Saturday 24 August 2013

जो तुझको मंजूर

इंसानों की इस बस्ती में
बना दिया मुझको लंगूर!
जो तुझको मंजूर भगवंत,
वो सब मुझको भी मंजूर!!

सब साहब बनके घूमते है
मुझसे कहेलावाता “जी हुजुर”!
जो तुझको मंजूर भगवंत,
वो सब मुझको भी मंजूर!!

उनके लिए सेब और अनारदाना
मुझको नहीं दे पाता तू खजूर!
जो तुझको मंजूर भगवंत,
वो सब मुझको भी मंजूर!!

उनके वास्ते बँगला और गाडी,
मगर मेरे ही लिए खट्टे अंगूर!
जो तुझको मंजूर भगवंत,
वो सब मुझको भी मंजूर!!

एक दिन मेरा नसीब बदलेगा
इंतज़ार करना मुझे है मंजूर!
जो तुझको मंजूर भगवंत,
वो सब मुझको भी मंजूर!!


तुषार खेर

Tuesday 13 August 2013

और मैं हूँ

ग़मों की बारिशे है और मैं  हूँ !
जीने की ख्वाइशें है और मैं  हूँ ! !

कठिन राहें गुजर है और मैं  हूँ ! !
होंसलें बुलंदी पर  है और मैं  हूँ !

सिने  में चुभन  है और मैं  हूँ !
मिलने की आस है  और मैं  हूँ ! !

दिलमें तन्हाई है  और मैं  हूँ !
यादों की  दस्तक है और मैं  हूँ !!

लफ्जों की खोज  हैं और में हूँ !
कोरा  कागज़  हैं और मैं  हूँ !!

तुषार खेर 

Friday 9 August 2013

ज़ज्बात

गुस्सा हुए लोग तो पथ्थर तक गये
पर दोस्तो  के हाथ तो खंजर तक गये

जुल्फ़े  न थी कम जरा भी महेक में
पागल थे हकीम जो इत्तर तक गये

बगैर  फायदे के लोग किसीको नाही भजते
जन्नत चाहिये थी तो अल्लाह तक गये

उसकी आंखो का नशा कुछ कम न था
न जाने कयुं लोग मयखाने तक गये?

जब अल्फाझ न कहे पाये दिल की लगी
ज़ज्बात नजरों से नज़र  तक गये

Wednesday 7 August 2013

गुफ्तगू

अगर वक्त हो रूबरू तो श्याम से गुफ्तगू करनी है 
भँवर को समझ पाऊ तो प्रवाहसे गुफ्तगू करनी है

बहुत दिनों से कुछ कहेने की कोशिश में लगा हूँ 
सही लब्ज़ मिले तो कागज़से गुफ्तगू करनी है

न कोई मेरा यहाँ , न मै  किसीका, ये  जानता हूँ 
मगर मिले कोई अपना तो प्यारसे गुफ्तगू करनी है

ढूंड  रहा हूँ  मेरे अस्तित्व का मतलब चारो और 
अहम न खाए चोट तो आईनेसे गुफ्तगू करनी है

मिलता है हर इंसान एक मुखौटा पहेने हुए यहाँ 
मिले सच्चा इन्सान तो तहे दिलसे गुफ्तगू करनी है

हमेंशा तुम्हारी यादों में घिरा रहेता हूँ
तन्हाई मिले थोड़ी तो खुदसे गुफ्तगू करनी है

तुषार खेर