Wednesday 7 August 2013

गुफ्तगू

अगर वक्त हो रूबरू तो श्याम से गुफ्तगू करनी है 
भँवर को समझ पाऊ तो प्रवाहसे गुफ्तगू करनी है

बहुत दिनों से कुछ कहेने की कोशिश में लगा हूँ 
सही लब्ज़ मिले तो कागज़से गुफ्तगू करनी है

न कोई मेरा यहाँ , न मै  किसीका, ये  जानता हूँ 
मगर मिले कोई अपना तो प्यारसे गुफ्तगू करनी है

ढूंड  रहा हूँ  मेरे अस्तित्व का मतलब चारो और 
अहम न खाए चोट तो आईनेसे गुफ्तगू करनी है

मिलता है हर इंसान एक मुखौटा पहेने हुए यहाँ 
मिले सच्चा इन्सान तो तहे दिलसे गुफ्तगू करनी है

हमेंशा तुम्हारी यादों में घिरा रहेता हूँ
तन्हाई मिले थोड़ी तो खुदसे गुफ्तगू करनी है

तुषार खेर 

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