अगर वक्त हो रूबरू तो श्याम से गुफ्तगू करनी है
भँवर को समझ पाऊ तो प्रवाहसे गुफ्तगू करनी है
बहुत दिनों से कुछ कहेने की कोशिश में लगा हूँ
सही लब्ज़ मिले तो कागज़से गुफ्तगू करनी है
न कोई मेरा यहाँ , न मै किसीका, ये जानता हूँ
मगर मिले कोई अपना तो प्यारसे गुफ्तगू करनी है
ढूंड रहा हूँ मेरे अस्तित्व का मतलब चारो और
अहम न खाए चोट तो आईनेसे गुफ्तगू करनी है
मिलता है हर इंसान एक मुखौटा पहेने हुए यहाँ
मिले सच्चा इन्सान तो तहे दिलसे गुफ्तगू करनी है
हमेंशा तुम्हारी यादों में घिरा रहेता हूँ
हमेंशा तुम्हारी यादों में घिरा रहेता हूँ
तन्हाई मिले थोड़ी तो खुदसे गुफ्तगू करनी है
तुषार खेर
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