Wednesday 19 December 2012


तन्हाई से दोस्ती  कर ली
अकेलेपन पे मात कर ली

पलकों का बोज सहे नहीं पा रहे थें
आंसुओ के लिए  हमने  राह   कर दी

जी रहा हूँ

डर डर के जी रहा हूँ 
मर मर के जी रहा हूँ 

दोस्तों ने दगे दिए 
माफ़ करके जी रहा हूँ 

झेले गम के कई मौसम 
फिरभी हसके जी रहा हूँ 

टुटा दिल और टूटे कई सपनें 
नए सपनों के साथ जी रहा हूँ 

तुम तो छोडके चले गए 
तुम्हारी यादमें जी रहा हूँ 

सुख दुःख तो आवें जावें 
यही सोच के जी रहा हूँ 

जीने की कोई राह दिखती नहीं 
भगवान् भरोसे जी रहा हूँ 



Sunday 16 December 2012

लम्हा लम्हा


लम्हा लम्हा सिसक रही है मेरी जिन्दगी 
जाने कैसे कहेते है वो खुबसूरत है जिन्दगी 
                        ***

एक जमाना बित  गया, गम ने मुहं मोड़े  हुए 
हमने पेन उठाये हुए, और शेर लिखे हुए 

                        ***


मैं जब उसके ख्वाब में गया , वो किसी और के ख्वाब में गयी थी 
या तो ये मेरी तक़दीर का दोष था,  या  उसके गुस्ताखी की हद थी 


अश्कों के जाम

अश्कों के जाम पी लेता हूँ 
मैं गम को जीत लेता हूँ 

तन्हाई जब हद से बढ़ जातीं हैं 
खुदसे थोडा बतियाँ लेता हूँ 

जब अपने भी पराये से लगते हैं 
मैं  गैरों को आजमन लेता हूँ 

जब भी ये दिल उदास होता हैं 
मैं  तुमको याद कर लेता हूँ 

जब मुश्किलें सुलझा नहीं पता हूँ 
परवर दीगर की शरण ले लेता हूँ 

Wednesday 5 December 2012

आदमी


कभी ऐसी एकाद गलती कर बैठता है आदमी
अपनी सारी  इज्जत पल में गवाँ   देता है आदमी

प्यार के बदले में भी कभी प्यार मिलता है?
धीरे धीरे ये बात भी जान लेता है आदमी

जैसे ही पुराने जख़म भरने लगते है
नए दर्द-ऐ-दिल पाल लेता है आदमी

स्वार्थ में अँधा हो कर, अपने  होश गवाँ  कर
अपनेही साथियों का गला काट देता है आदमी

काहेको ऐसे कडवे   सत्य कहे देते हो जनाब ?
नाहक में मन को दुखी कर लेता है आदमी

Sunday 2 December 2012

मै क्यां करूँ?


मैंने तो माँगा था दुआ में तुमको खुदा से ओ  सनम
खुदा ने मेरी दुआ कुबूल नहीं की तो  मै क्यां करूँ?

मैंने तो तदबीर में कोई कमी ना छोड़ी  थी ओ  सनम
तकदीर ने तदबीर का साथ न दिया तो मै क्या करू?

मैंने तो सिर्फ गुलाबों का बागान लगाया था ओ सनम
गुलाब के साथ कांटें  भी  निकले तो  मै क्यां करूँ?

पूर्णमासी  के चाँद की रौशनी में भी मै  खुश था सनम
पूर्णमासी  के  रात के बाद भी पौ फाटे मै क्यां करूँ?

मै   जिन्दगी के हर पहेलु का मजा ले रहा था सनम
जिन्दगी सिर्फ चार दिन की निकली तो मै क्यां करूँ?