गुस्सा हुए लोग तो पथ्थर तक गये
पर दोस्तो के हाथ तो खंजर तक गये
जुल्फ़े न थी कम जरा भी महेक में
पागल थे हकीम जो इत्तर तक गये
बगैर फायदे के लोग किसीको नाही भजते
जन्नत चाहिये थी तो अल्लाह तक गये
उसकी आंखो का नशा कुछ कम न था
न जाने कयुं लोग मयखाने तक गये?
जब अल्फाझ न कहे पाये दिल की लगी
ज़ज्बात नजरों से नज़र तक गये
पर दोस्तो के हाथ तो खंजर तक गये
जुल्फ़े न थी कम जरा भी महेक में
पागल थे हकीम जो इत्तर तक गये
बगैर फायदे के लोग किसीको नाही भजते
जन्नत चाहिये थी तो अल्लाह तक गये
उसकी आंखो का नशा कुछ कम न था
न जाने कयुं लोग मयखाने तक गये?
जब अल्फाझ न कहे पाये दिल की लगी
ज़ज्बात नजरों से नज़र तक गये
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