वक्त-बेवक्त उठते हुए गुबार से थक गया हूँ मैं, किनारा हूँ आती जाती मौजोसे थक गया हूँ मैं ! न जीने की ख्वाइश है, ना ही मरने का डर, बेवजह चल रही साँसो से थक गया हूँ मैं ! कबसे माफ कर चुका हूँ उस बेवफा के गुनाह को. फिर भी आ रही उसकी सफाई से थक गया हूँ मैं ! राज़ आ जायेंगे मुझे मेरे आंसू और मेरी तन्हाई मेरे अपनों से मिल रही हमदर्दी से थक गया हूँ मैं ! तुषार खेर