इंसानों की इस बस्ती में बना दिया मुझको लंगूर! जो तुझको मंजूर भगवंत, वो सब मुझको भी मंजूर!! सब साहब बनके घूमते है मुझसे कहेलावाता “जी हुजुर”! जो तुझको मंजूर भगवंत, वो सब मुझको भी मंजूर!! उनके लिए सेब और अनारदाना मुझको नहीं दे पाता तू खजूर! जो तुझको मंजूर भगवंत, वो सब मुझको भी मंजूर!! उनके वास्ते बँगला और गाडी, मगर मेरे ही लिए खट्टे अंगूर! जो तुझको मंजूर भगवंत, वो सब मुझको भी मंजूर!! एक दिन मेरा नसीब बदलेगा इंतज़ार करना मुझे है मंजूर! जो तुझको मंजूर भगवंत, वो सब मुझको भी मंजूर!! तुषार खेर