लम्हा लम्हा सिसक रही है मेरी जिन्दगी
जाने कैसे कहेते है वो खुबसूरत है जिन्दगी
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एक जमाना बित गया, गम ने मुहं मोड़े हुए
हमने पेन उठाये हुए, और शेर लिखे हुए
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मैं जब उसके ख्वाब में गया , वो किसी और के ख्वाब में गयी थी
या तो ये मेरी तक़दीर का दोष था, या उसके गुस्ताखी की हद थी
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