कभी ऐसी एकाद गलती कर बैठता है आदमी
अपनी सारी इज्जत पल में गवाँ देता है आदमी
प्यार के बदले में भी कभी प्यार मिलता है?
धीरे धीरे ये बात भी जान लेता है आदमी
जैसे ही पुराने जख़म भरने लगते है
नए दर्द-ऐ-दिल पाल लेता है आदमी
स्वार्थ में अँधा हो कर, अपने होश गवाँ कर
अपनेही साथियों का गला काट देता है आदमी
काहेको ऐसे कडवे सत्य कहे देते हो जनाब ?
नाहक में मन को दुखी कर लेता है आदमी
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