Wednesday 19 December 2012

जी रहा हूँ

डर डर के जी रहा हूँ 
मर मर के जी रहा हूँ 

दोस्तों ने दगे दिए 
माफ़ करके जी रहा हूँ 

झेले गम के कई मौसम 
फिरभी हसके जी रहा हूँ 

टुटा दिल और टूटे कई सपनें 
नए सपनों के साथ जी रहा हूँ 

तुम तो छोडके चले गए 
तुम्हारी यादमें जी रहा हूँ 

सुख दुःख तो आवें जावें 
यही सोच के जी रहा हूँ 

जीने की कोई राह दिखती नहीं 
भगवान् भरोसे जी रहा हूँ 



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