जो तुम्हे दे वो मुझे वरदानमेँ मानने लगु मैं भी भगवानमेंं । दिल का रोना कौन देख पाता है आँख टपके तो बात आये ध्यानमें । खंजर छुपाये क्यों घुमते हो दोस्त मांग लेते, तो जान दे देता दानमें । बंदगी में कैसी आई नात -जात क्या फर्क है श्रावण और रमजानमें? आँख मिचोली मत खेल मौत तू हिम्मत है तो आ आज मैदानमें । याद में तेरी अभी तक जल रहा देख ले आके तू चिता समशानमें. ! तुषार खेर