रोज कहाँ मन के भीतर तरंगे उठ पाती है !
रोज कहाँ कागज़ पे कलम ये चल पाती है !!
हवा के झोकों की तरह याद उसकी आती है
पहले की तरह कहाँ वो मेरा साथ दे पाती हैं !!
हसते हुए चहेरे हमेशा खूबसूरत लगते है,
पर गम में चहेरे पे हसी कहाँ रुक पाती है !!
मन की भावनाओं को शब्दों में पिरोना होता है
उसके बगैर कहाँ कागज़ पे कलम चल पाती है ?
आग में तपने के बाद ही सोना चमक पाता है
ये बात तड़पते दिल को याद कहाँ रह पाती है?
तुषार खेर
रोज कहाँ कागज़ पे कलम ये चल पाती है !!
हवा के झोकों की तरह याद उसकी आती है
पहले की तरह कहाँ वो मेरा साथ दे पाती हैं !!
हसते हुए चहेरे हमेशा खूबसूरत लगते है,
पर गम में चहेरे पे हसी कहाँ रुक पाती है !!
मन की भावनाओं को शब्दों में पिरोना होता है
उसके बगैर कहाँ कागज़ पे कलम चल पाती है ?
आग में तपने के बाद ही सोना चमक पाता है
ये बात तड़पते दिल को याद कहाँ रह पाती है?
तुषार खेर
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