Friday, 29 September 2017
Thursday, 21 September 2017
कब तक?
नशीली है नज़र, पर ये नज़र आखिर कब तक?
फौलादी है जिगर, पर ये जिगर आखिर कब तक?
अपना समझ के जिसमें निबाह कर रहे है
खंडहर बनेगा नहीं वो घर, आखिर
कब तक?
जींवन के सफरका मतलब तूने जाना है क्या दोस्त?
लंबा हो या छोटा, पर है ये सफर आखिर कब तक?
गीता के पाठ पढ़ रहा है, सुमिरन भी कर रहा है
रहेती है जीवन में
उसकी असर आखिर कब तक?
मौत की बाहों में जब झूले तो ये बात जान पाए
जानते न थे अगर , तो रहे वो अनजान कब तक?
संगमरमर से हो बना या बना हो हीरो मोती से
रहेगा इस दुनियां में वो मकबरा आखिर कब तक?
तुषार खेर
Saturday, 11 March 2017
कर नहीं पाया
अकेले रहेना, कर नहीं पाया|
इंसानों से भागना, कर नहीं
पाया|
चहेरा अभी भी दिल का आइना है,
मुखौटा पहेनना, कर नहीं
पाया|
महेनत को मना कर नहीं पाया|
मुफ्त की रोटी तोडना, कर नहीं पाया|
रोजाना देव दर्शन, कर नहीं
पाया|
तुषार खेर
३०.०१.२०१७
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