नशीली है नज़र, पर ये नज़र आखिर कब तक?
फौलादी है जिगर, पर ये जिगर आखिर कब तक?
अपना समझ के जिसमें निबाह कर रहे है
खंडहर बनेगा नहीं वो घर, आखिर
कब तक?
जींवन के सफरका मतलब तूने जाना है क्या दोस्त?
लंबा हो या छोटा, पर है ये सफर आखिर कब तक?
गीता के पाठ पढ़ रहा है, सुमिरन भी कर रहा है
रहेती है जीवन में
उसकी असर आखिर कब तक?
मौत की बाहों में जब झूले तो ये बात जान पाए
जानते न थे अगर , तो रहे वो अनजान कब तक?
संगमरमर से हो बना या बना हो हीरो मोती से
रहेगा इस दुनियां में वो मकबरा आखिर कब तक?
तुषार खेर
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