दिल में दबाये गम,
चहेरे पे झूठी हँसी लिए,
अपने आप को छलता रहा,
बेदर्द ज़माने के लिए|
सूरत-ऐ-आइना काफी था
दिदार-ऐ-दिल के लिए,
किसने कहा था मियां
चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ?
चार दिन जवानी के काफी थे
दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए,
क्यूँ मांगी थी दुआ रब से
लम्बी जिंदगानी के लिए ?
रहेमत परवर दिगार की काफी थी
जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए
किसने कहा था मियां,
खुद को खुदा समझने के लिए?
बहुत उम्दा तुषार भाई ...
ReplyDeleteशुक्रिया, मनोज भाई
ReplyDeleteसुन्दर प्रयास है । भाव अच्छे हैं !
ReplyDeleteशुक्रिया सर
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