Saturday 20 October 2012

चहेरे पे चहेरा

दिल में दबाये गम, 
चहेरे पे झूठी हँसी लिए,
अपने आप को छलता रहा, 
बेदर्द ज़माने के लिए| 

सूरत-ऐ-आइना काफी था 
दिदार-ऐ-दिल के लिए,
किसने कहा था मियां
चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ?

चार दिन जवानी के काफी थे
दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए,
क्यूँ मांगी थी दुआ रब से
लम्बी जिंदगानी के लिए ?

रहेमत परवर दिगार की काफी थी 
जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए 
किसने कहा था मियां,
खुद को खुदा समझने के लिए?

4 comments:

  1. बहुत उम्दा तुषार भाई ...

    ReplyDelete
  2. शुक्रिया, मनोज भाई

    ReplyDelete
  3. सुन्दर प्रयास है । भाव अच्छे हैं !

    ReplyDelete
  4. शुक्रिया सर

    ReplyDelete