ये आज मुझको क्या हो गया यारों ?
बरसो पुराना जख्म हरा हो गया यारों,
अलफ़ाज़ मेरे गले में ही रुक गएँ यारों,
और आँख से आंसू बहेने लगे यारों !
आसमान में काली घटा छाते ही
मन मेरा उधास हो गया यारों !
अंतरपट में कुछ ऐसी हालचल हो रही यारों
जैसे झिलके पानी में चादनी झूलती हो यारों।
नहीं कुछ ख्याल है और न ही कुछ पता
मंजिल कहाँ है और कहा है मुझे जाना
इस तरह मैं अब भटक रहां हूँ यारों
जैसे खुशबूं फैले हवा के संग यारों!
ये मेरी हालत कैसे कोई समझेगा यारों ?
मैं किस से पूछूं? कौन मुझे बतायेगा यारों?
जितना सम्हलने की कोशिश करता हूँ
उतना ही मैं लडखडा रहा हूँ यारों !
ऐसे में कौन आके मुझे सम्हालेगा यारों?
ये आज मुझको क्या हो गया यारों ?
बरसो पुराना जख्म हरा हो गया यारों,
और आँख से आंसू बहेने लगे यारों !
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