Saturday 2 March 2013

प्रभु उवाच ...

 सुबह सवेरे पंछी का गान बनके 
तुमको  संगीत सुनाने  आता हूँ।

सूरज के किरणों से सज-धज के 
तुम्हारे दर्शन करने आता हूँ।

मंदीर में तुम्हारे प्रवेश करते  ही 
घंट नाद बन के  स्वागत  करने आता हूँ।

रात में जब तुम तन्हा हो जाते हो 
चाँद बनके तुम से गुफ्तगू करने आता हूँ।

सागर किनारे ठंडी हवा बनके 
तुम्हारी थकान मिटने आता हूँ।

सागर की लहेंरों  का रूप ले के 
तुम्हारा पद-प्रक्षालन करने आता हूँ।

और  तुम्हे मुझसे  ये शिकायत है की 
मैं तुमसे मिलने कहाँ आता हूँ?

हे मेरे भक्त मुझपे भरोसा रख 
मैं हमेशां तुम्हारे साथ ही आता हूँ।

तुषार खेर 

No comments:

Post a Comment