बरसों के बाद आज फिर मुहसे शायरी निकल गयी ।
क्यां बताऊँ तुम्हें मेरे आँखों की नमी का राज़ ?
मेरे मौन की मिलकियत न जाने कहाँ खो गयी ।।
वोही गम, वोही दिल का टूटना, वोही अधूरे ख्वाब ।
इन सब की अब जिन्दगी को आदत सी हो गयी ।।
कहाँ से लाऊ मेरे रोने का सबुत ए दोस्त मेरे?
दो पल की मुस्कुराहट मेरी तस्वीर में कैद हो गयी ।
क्यां बताऊँ तुम्हें मेरे आँखों की नमी का राज़ ?
दिलमें रहेने वाली अब खयालो से भी बहार हो गयी ।
मेरे दिल के गम तुम्हे कैसे दिखेंगे जनाब ?
जूठी हसीं के पीछे उन्हें छुपाने की आदत हो गयी ।
आज कल मुझे कुछ भी याद नहीं रहेता।
लगता है मेरे बुढापे की शुरुआत हो गयी।।
तुषार खेर
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