Friday 28 June 2013

जिंदगानी

 ये  कौन मुझे मेरे होने का भ्रम दे रहा है?
ये कौन है जो मेरे बदले, मुझे जी रहा है?

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 हम उनके लफ्ज़ सुनने को तरसते रहे.
 ख़ामोशी सब कहे गई, हम तरसते रहे.

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नहीं चाहिए ए  खूदा, दो पल की ख़ुशी तेरी 
दर्द पाके तुझसे, लिखी है ये शायरी मेरी 

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जागु तो खयालो सी लगे 
सोऊ  तो ख्वाब सी लगे 
मेरी खुदकी जिंदगानी 
मुझको अजनभी सी लगे 

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एक रास्ता भुलने से मेरी तक़दीर बदल गई 
कभी सोची न थी, ऐसी मंझिले मुक्कमल हुई 

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