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Showing posts from October, 2013

समेट लूँ

जी करता है सब कुछ समेट लूँ पर जिदगी को कैसे समेट लूँ ? अगर तू समा जाए मुझमें तो मै बहुत कुछ समेट लूँ ! बहुत फासलें है हमारे दरमियाँ तूम कहो तो थोडा समेट लूँ !  फ़ैल जाऊं मैं पूरी दुनियांमें या  दुनियां को मुझमें समेट लूँ ? मैं  अकेला, आस पास कोई नहीं तन्हाईको भला कैसे समेट लूँ ? तुषार खेर 

आज कल !!

डिग्रीओं  का बोज ढो रहाँ  हूँ आज कल! पढ़ा लिखा हूँ, पर  बेकार हूँ आज कल !! संक्रमक रोग कि तरह हरतरफ फैला है ! पैसे खाने का ये  नया रोग आज कल !! दुश्मनों से भी दोस्त दो क़दम आगे है सीधा छाती पे करते हमला आज कल !! अँधेरी गलियों में मैं अकेले खड़ा हूँ ! सायें का भी साथ नहीं हैं  आज कल !! "पैसा ही सबकुछ है" कहे ये ज़माना कैसे सम्हालूँ मैं ईमान आज कल !!

अच्छा लगता है!

क्या इंतज़ार करना अच्छा लगता है? क्यूँ कहता है? "सबकुछ अच्छा लगता है!" बगैर गलती के जो बन्दा झुक जाता है, परवर दिगार  को वोही अच्छा लगता है! मेरा कहा सबकुछ चुपचाप सुनता है, इसीलिए मुझे आईना अच्छा लगता है! जब भी मिलता है दिल दुखाता  है, फिर भी वो सख्श अच्छा लगता है! जब भी याद आता है, मुझे बहुत रुलाता है उसका याद आना, फिर भी, अच्छा लगता है! तुषार खेर 

तक़दीर

भले मेरी तक़दीर फकीरों जैसी है फिर भी जिन्दगी अमीरों जैसी है कभी यहाँ तो कभी वहां भटकता  है मेरे मन की हालत समीर जैसी है कल मेरी  सोने जैसी हो सकती है चाहे मेरी आज पीतल जैसी है राम भी मेरा और रहीम  भी मेरा है मेरी सोच भी आज कबीर जैसी है मोह माया के पाश मैं ऐसे फसे है शायद हालत मेरी कैदी  जैसी है 

ज़िन्दगी !!

दर दर की ठोकरें  खिला  रही है ये ज़िन्दगी ! न जाने कहाँ ले जा रही है ये ज़िन्दगी !! रोज ही रामायण और रोज ही महाभारत ! रोज एक नया अध्याय  है ये ज़िन्दगी !! कभी हारके जीताती है ,कभी जितके हराति है! लगता है कोई खतरनाक खेल है ये  ज़िन्दगी  !! कभी सुबह से  श्याम तक का हँसी सफ़र कभी मध्यान में ही अस्त है ये  ज़िन्दगी  !!