जी करता है सब कुछ समेट लूँ पर जिदगी को कैसे समेट लूँ ? अगर तू समा जाए मुझमें तो मै बहुत कुछ समेट लूँ ! बहुत फासलें है हमारे दरमियाँ तूम कहो तो थोडा समेट लूँ ! फ़ैल जाऊं मैं पूरी दुनियांमें या दुनियां को मुझमें समेट लूँ ? मैं अकेला, आस पास कोई नहीं तन्हाईको भला कैसे समेट लूँ ? तुषार खेर