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ज़िन्दगी !!

दर दर की ठोकरें  खिला  रही है ये ज़िन्दगी !
न जाने कहाँ ले जा रही है ये ज़िन्दगी !!

रोज ही रामायण और रोज ही महाभारत !
रोज एक नया अध्याय  है ये ज़िन्दगी !!

कभी हारके जीताती है ,कभी जितके हराति है!
लगता है कोई खतरनाक खेल है ये  ज़िन्दगी  !!

कभी सुबह से  श्याम तक का हँसी सफ़र
कभी मध्यान में ही अस्त है ये  ज़िन्दगी  !!

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चहेरे पे चहेरा

दिल में दबाये गम,  चहेरे पे झूठी हँसी लिए, अपने आप को छलता रहा,  बेदर्द ज़माने के लिए|  सूरत-ऐ-आइना काफी था  दिदार-ऐ-दिल के लिए, किसने कहा था मियां चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ? चार दिन जवानी के काफी थे दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए, क्यूँ मांगी थी दुआ रब से लम्बी जिंदगानी के लिए ? रहेमत परवर दिगार की काफी थी  जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए  किसने कहा था मियां, खुद को खुदा समझने के लिए?

Nilaami 1

नामुमकिन नही

तेरे बगैर जिंदगी जीना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही  टूटे दिल का इलाज करना.... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी यादों को भुला पाना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी जगह, किसी और को देना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही आँसुओं को आंखों में रोकना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही चहेरे पर झूठी हँसी लाना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी खुशी के लिए इतना करना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही हर मुश्किल को आसां करना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही नामुमकिन को मुमकिन करना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही