Thursday 31 October 2013

समेट लूँ

जी करता है सब कुछ समेट लूँ
पर जिदगी को कैसे समेट लूँ ?

अगर तू समा जाए मुझमें
तो मै बहुत कुछ समेट लूँ !

बहुत फासलें है हमारे दरमियाँ
तूम कहो तो थोडा समेट लूँ !

 फ़ैल जाऊं मैं पूरी दुनियांमें या
 दुनियां को मुझमें समेट लूँ ?

मैं  अकेला, आस पास कोई नहीं
तन्हाईको भला कैसे समेट लूँ ?

तुषार खेर 

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