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तक़दीर

भले मेरी तक़दीर फकीरों जैसी है
फिर भी जिन्दगी अमीरों जैसी है

कभी यहाँ तो कभी वहां भटकता  है
मेरे मन की हालत समीर जैसी है

कल मेरी  सोने जैसी हो सकती है
चाहे मेरी आज पीतल जैसी है

राम भी मेरा और रहीम  भी मेरा है
मेरी सोच भी आज कबीर जैसी है

मोह माया के पाश मैं ऐसे फसे है
शायद हालत मेरी कैदी  जैसी है 

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Nilaami 1

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