Tuesday, 29 October 2013

आज कल !!

डिग्रीओं  का बोज ढो रहाँ  हूँ आज कल!
पढ़ा लिखा हूँ, पर  बेकार हूँ आज कल !!

संक्रमक रोग कि तरह हरतरफ फैला है !
पैसे खाने का ये  नया रोग आज कल !!

दुश्मनों से भी दोस्त दो क़दम आगे है
सीधा छाती पे करते हमला आज कल !!

अँधेरी गलियों में मैं अकेले खड़ा हूँ !
सायें का भी साथ नहीं हैं  आज कल !!

"पैसा ही सबकुछ है" कहे ये ज़माना
कैसे सम्हालूँ मैं ईमान आज कल !!

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