Skip to main content

एक तितली, रंग बिरंगी

एक तितली, रंग बिरंगी 
दो दिनकी उसकी जिन्दगी 
हसते  हसते वो  फिर भी 
फूलों में प्यार बांटती गयी 
सुगन्ध फ़ैलाने की  सिख 
 फूलों को   देती  गयी 
एक तितली, रंग बिरंगी 

जैसे मैंने हर रंग को अपनाया है 
सुख दुःख के रंगों को अपनाना 
जैसे मैंने अपने सौंदर्य से
 कुदरत को है  सजाया 
अपनी अच्छाई से आप 
मानवता को सजाना 
ऐसी उमदा  सिख  वो 
मानव को देती गयी 
एक तितली, रंग बिरंगी 

मेरी  तरह आपकी भी 
जिन्दगी है बहुत छोटी 
प्यार मुहूबत बांटके 
संवार लेना लोगो की जिन्दगी 
इंसानों को प्यार भरी 
सिख दे गयी एक तितली 
दो दिन की जिसकी जिन्दगी 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

चहेरे पे चहेरा

दिल में दबाये गम,  चहेरे पे झूठी हँसी लिए, अपने आप को छलता रहा,  बेदर्द ज़माने के लिए|  सूरत-ऐ-आइना काफी था  दिदार-ऐ-दिल के लिए, किसने कहा था मियां चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ? चार दिन जवानी के काफी थे दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए, क्यूँ मांगी थी दुआ रब से लम्बी जिंदगानी के लिए ? रहेमत परवर दिगार की काफी थी  जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए  किसने कहा था मियां, खुद को खुदा समझने के लिए?

तन्हाईयाँ

मै अकेला और मेरी तन्हाईयाँ है | तेरी याद से लिपटी तन्हाईयाँ है || मुझे कहाँ ये तन्हा रहेने देती है ? मेरे साथ रहेती तेरी परछाई याँ है | तस्सवुर में भी उनमें में डूब जाता हूँ | अजीब  तेरे आँखों की गहराइयाँ है || तेरे ख़यालों में ही खोया  रहेता हूँ मैं| मेरे दिल को भाती तेरी नादानियाँ है|| तन्हाईयों से क्यूं भागते है लोग ? मुझको लगती प्यारी तन्हाईयाँ है ||  तुषार खेर

कर नहीं पाया

अकेले रहेना, कर नहीं पाया | इंसानों से भागना, कर नहीं पाया | चहेरा अभी भी दिल का आइना है, मुखौटा पहेनना, कर नहीं पाया | जो मिला उसीको मुक्कदर समझा है , महेनत को मना कर नहीं पाया | खून पसीने की   खाने की आदत है , मुफ्त की रोटी तोडना , कर नहीं पाया | रोते हुए बच्चों को हसाने की आदत है , रोजाना देव दर्शन, कर नहीं पाया | तुषार खेर    ३०.०१.२०१७