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क्या करें?


न वो तो तेरी सुनता है न ही मेरी सुनता है
उपरवाला तो बस अपने  मन की करता है

न मंदीर में रहेता है न मस्जिद में रहेता है
खुदा अपना ठिकाना कब जग-जाहिर करता है?


सूरज तो रोज डूबता है और रोज निकलता  है
पर अपने गम की रात का कब सवेरा करता है?

कभी इस फुल को चूमता है तो कभी उस फुल को चूमता है
नादान भंवरा कब किसी फूलको हमेंशा अपनाया  करता है

न हिन्दू को छोड़ता है न मुसलमान को छोड़ता है
आतंकवादी का हुम्ला  कहाँ मजहब देखा करता है?

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चहेरे पे चहेरा

दिल में दबाये गम,  चहेरे पे झूठी हँसी लिए, अपने आप को छलता रहा,  बेदर्द ज़माने के लिए|  सूरत-ऐ-आइना काफी था  दिदार-ऐ-दिल के लिए, किसने कहा था मियां चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ? चार दिन जवानी के काफी थे दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए, क्यूँ मांगी थी दुआ रब से लम्बी जिंदगानी के लिए ? रहेमत परवर दिगार की काफी थी  जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए  किसने कहा था मियां, खुद को खुदा समझने के लिए?

Nilaami 1

नामुमकिन नही

तेरे बगैर जिंदगी जीना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही  टूटे दिल का इलाज करना.... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी यादों को भुला पाना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी जगह, किसी और को देना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही आँसुओं को आंखों में रोकना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही चहेरे पर झूठी हँसी लाना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी खुशी के लिए इतना करना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही हर मुश्किल को आसां करना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही नामुमकिन को मुमकिन करना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही