ज़िन्दगी की राह -ऐ-गुजर कुछ ऐसे कर रहा हूँ ।
पता नहीं 'क्यूँ? ' फिर भी मै जिये जा रहा हूँ ।।
'कहाँ से आया?' 'कहाँ है जाना?' 'क्या तुझे है करना?'
व्यर्थ ही ऐसे मुश्किल सवाल खुदसे किये जा रहा हूँ ।
'अन्त में साथ में कुछ नहीं है जाता सिवा अपने कर्मो के'
जानते हुंए ये, जैसे भी हो, धन अर्जित किये जा रहा हूँ !
सुना है की 'कण कण में है राम , अपने मन में भी है राम' ।
फिर भी मंदिर की मूरत में उसकी खोज किये जा रहा हूँ ।।
ज़िन्दगी की राह -ऐ-गुजर कुछ ऐसे कर रहा हूँ !
पता नहीं 'क्यूँ? ' फिर भी मै जिये जा रहा हूँ !!
तुषार खेर
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