Sunday 3 February 2013

राह -ऐ-गुजर


ज़िन्दगी की राह -ऐ-गुजर कुछ ऐसे कर रहा  हूँ ।
पता नहीं 'क्यूँ? ' फिर भी मै जिये जा रहा हूँ ।।

'कहाँ से आया?' 'कहाँ है जाना?' 'क्या तुझे है करना?'
व्यर्थ ही ऐसे मुश्किल सवाल खुदसे किये जा रहा हूँ ।

'अन्त में साथ में कुछ नहीं है जाता सिवा अपने कर्मो के
जानते हुंए ये, जैसे भी हो,  धन अर्जित  किये जा रहा हूँ !
 
सुना है की 'कण कण में  है राम , अपने मन में भी है राम' ।
फिर भी मंदिर की मूरत में उसकी खोज  किये जा रहा हूँ ।।

ज़िन्दगी की राह -ऐ-गुजर कुछ ऐसे कर रहा  हूँ !
पता नहीं 'क्यूँ? ' फिर भी मै जिये जा रहा हूँ !!

तुषार खेर

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