मेरी हिंदी कवितायेँ
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MAJHYA MARATHI KAVITA
Friday, 2 November 2012
अपनापन
गैरों में कहाँ था इतना दम
दिलको हमारे दे पाते गम .
तेरी जुदाई करती है आँखें नम
तुझे अपना जो माने है ये मन.
मेरी आँखें फिरसे ना हो नम
सदा रहे हममें ये अपनापन.
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