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कौन चाहता है


कौन चाहता है  यूँ जिन्दगी से खेलना
ये जिन्दगी ही मुझसे खिलवाड़ कर रही है 

कौन चाहता है  यूँ तक़दीर से उलझाना
तक़दीर ही मुझसे बार बार उलझ रही है 

कौन चाहता है  यूँ चौकट पे सर झुकाना
कोई ताकत मुझे बार बार झुका रही है 

कौन चाहता है  यूँ मंझिले बदलते रहेना
हर राह मुझे एक नयी मंझिल दिखा रही है 

कौन चाहता है  यूँ   घमंडी बनके  रहेना
हर एक सफलता मुझे मगरूर बना रही है 

कौन चाहता है यूँ इश्क में तनहा रहेना
किसी की बेवफाई मुझे तनहा बना रही है 

कौन चाहता है  इस तराह जिन्दगी जीना
ये जिदगी ही मुझको तिल तिल  मार रही है 

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चहेरे पे चहेरा

दिल में दबाये गम,  चहेरे पे झूठी हँसी लिए, अपने आप को छलता रहा,  बेदर्द ज़माने के लिए|  सूरत-ऐ-आइना काफी था  दिदार-ऐ-दिल के लिए, किसने कहा था मियां चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ? चार दिन जवानी के काफी थे दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए, क्यूँ मांगी थी दुआ रब से लम्बी जिंदगानी के लिए ? रहेमत परवर दिगार की काफी थी  जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए  किसने कहा था मियां, खुद को खुदा समझने के लिए?

Nilaami 1

नामुमकिन नही

तेरे बगैर जिंदगी जीना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही  टूटे दिल का इलाज करना.... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी यादों को भुला पाना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी जगह, किसी और को देना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही आँसुओं को आंखों में रोकना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही चहेरे पर झूठी हँसी लाना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी खुशी के लिए इतना करना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही हर मुश्किल को आसां करना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही नामुमकिन को मुमकिन करना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही