कौन चाहता है यूँ जिन्दगी से खेलना
ये जिन्दगी ही मुझसे खिलवाड़ कर रही है
कौन चाहता है यूँ तक़दीर से उलझाना
तक़दीर ही मुझसे बार बार उलझ रही है
कौन चाहता है यूँ चौकट पे सर झुकाना
कोई ताकत मुझे बार बार झुका रही है
कौन चाहता है यूँ मंझिले बदलते रहेना
हर राह मुझे एक नयी मंझिल दिखा रही है
कौन चाहता है यूँ घमंडी बनके रहेना
हर एक सफलता मुझे मगरूर बना रही है
कौन चाहता है यूँ इश्क में तनहा रहेना
किसी की बेवफाई मुझे तनहा बना रही है
कौन चाहता है इस तराह जिन्दगी जीना
ये जिदगी ही मुझको तिल तिल मार रही है
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