Saturday, 3 November 2012

चल जिन्दगी मौत को जीना सिखलाए !


जिन्दगी क्या होती है उसको बतलाए,
चल जिन्दगी मौत को जीना सिखलाए !

जब भी ये आती है सबको रुलाती है,
चल इसे दूसरों को हँसाना सिखलाये! 

दबे पाँव ये चुपके से रुजू हो जाती है,
इसे दरवाजे पे दस्तक देना सिखलाएँ !

कमजोर लाचार इंसानों को ये हरा देती है,
इसे कमजोरों का हौसला बढ़ाना सिखला दे! 

जब ये  आये  , इसे  ख़ुशी से गले लगा ले,
'अतिथि देवो भव' ये   भी सिखला दे उसे!

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