मौत उठा लेती मुझे उसकी क्या औकात थी?
मैंने देखा, जिन्दगी ने भी इशारा कर दिया था
इन बुलंदी को छुं लूँ, इतना कहाँ मैं होनहार था
वो तो मेरी तदबीर को तकदीर का सहारा था
हर कोई छोड़ के चल दे इतना मैं नाकारा नहीं था
कुछ दोस्तों की बेवफाई तो कुछ वक्त का तकाजा था
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