अब चाहे शौख से मुझे क़त्ल कर दो यारों
मै तो अपनी जिन्दगी जी चूका यारों.
मै अपनी इस जिन्दगी का क्या करूँ यारों
जीने का अहेसास तो कबसे मर चूका यारों.
अब चाहे इस गुल को शाख से तोड़ दो यारों
वो अपनी खुश्बू गुलशन में फैला चूका यारों.
तेज होने दो अब रंज-ओ-गम की बारिशें यारों
ये दिल तो कबका पत्थर बन चूका यारों.
अफासानें अपनों के रंज-ओ-गम के न सूनाओ हमें
अश्कों का समंदर तो कबका सुख चूका यारों.
इस जिस्म को अब शौख से जला दो यारों
ये घर तो मै कबका छोड़ चूका यारों.
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