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अहेसास

अब चाहे शौख से मुझे क़त्ल कर दो यारों
मै  तो अपनी जिन्दगी जी चूका यारों.

मै अपनी इस जिन्दगी का क्या करूँ यारों
जीने का अहेसास तो कबसे मर चूका यारों.

अब चाहे इस गुल को शाख से तोड़ दो यारों
वो अपनी खुश्बू गुलशन में फैला चूका यारों.

तेज होने दो अब रंज-ओ-गम की बारिशें यारों
ये दिल तो कबका पत्थर बन चूका यारों.

अफासानें  अपनों के  रंज-ओ-गम के  न सूनाओ हमें
अश्कों का समंदर तो कबका सुख चूका यारों.

इस जिस्म को अब शौख से जला दो यारों
ये घर तो मै कबका छोड़ चूका यारों.

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चहेरे पे चहेरा

दिल में दबाये गम,  चहेरे पे झूठी हँसी लिए, अपने आप को छलता रहा,  बेदर्द ज़माने के लिए|  सूरत-ऐ-आइना काफी था  दिदार-ऐ-दिल के लिए, किसने कहा था मियां चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ? चार दिन जवानी के काफी थे दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए, क्यूँ मांगी थी दुआ रब से लम्बी जिंदगानी के लिए ? रहेमत परवर दिगार की काफी थी  जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए  किसने कहा था मियां, खुद को खुदा समझने के लिए?

Nilaami 1

नामुमकिन नही

तेरे बगैर जिंदगी जीना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही  टूटे दिल का इलाज करना.... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी यादों को भुला पाना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी जगह, किसी और को देना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही आँसुओं को आंखों में रोकना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही चहेरे पर झूठी हँसी लाना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही तेरी खुशी के लिए इतना करना .... मुश्किल है, नामुमकिन नही हर मुश्किल को आसां करना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही नामुमकिन को मुमकिन करना ... मुश्किल है, नामुमकिन नही